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Salima Khan Story: 92 साल की उम्र में सलीमा खान ने दी परीक्षा, नंबर्स देखकर चौंक गए सब

 प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ पढ़ाई करती परदादी सलीमा खान। 

 प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ पढ़ाई करती परदादी सलीमा खान। 

Salima Khan story: 'पढ़ने लिखने की कोई उम्र नहीं होती।' हम यह लाइनें अक्सर कहीं न कहीं पढ़ लेते हैं, लेकिन कम ही लोग ऐसे होते हैं, जो कि उम्र के आखिरी पड़ाव में भी कुछ नया करने और सीखने के लिए बेताब रहते हैं। आज यूपी के बुलंदशहर की रहने वाली सलीमा खान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने 92 साल की उम्र में प्राइमरी स्कूल में जाना शुरू किया और कड़ी मेहनत करके पढ़ना लिखना सीख लिया है। उनकी कहानी जानकर आसपास के लोग प्रभावित हैं। अगर आप भी सलीमा खान की कहानी पढ़ेंगे तो आप भी निश्चित ही उन ख्वाबों को भी पूरा करने की अवश्य ठानेंगे, जो वक्त की कमी या किसी अन्य कारण के चलते पूरे नहीं हो सके।�

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक,��सलीमा खान का जन्म 1931 के आसपास हुआ था। उनकी शादी 14 साल की उम्र में हो गई यानी भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंत से दो साल पहले। सलीमा खान को बचपन से पढ़ने का सपना था। सलीमा बताती हैं कि गांव में कोई स्कूली नहीं था और गांव से बाहर भेज नहीं सकते थे। इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकी। उन्होंने बताया कि वक्त गुजरता रहा, लेकिन जिम्मेदारियों के चलते पढ़ाई का सपना सपना ही रह गया। उन्होंने बताया कि करीब छह महीने पहले मुझे लगा कि अब मुझे पढ़ना चाहिए, कम से कम अपना नाम पढ़ लिख सकूं। ये सोचकर प्राइमरी स्कूल गईं। वहां के स्टाफ ने भी सहयोग किया और पढ़ाई� करने का सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने बताया कि कक्षा में उनके पोते की पत्नी भी उनके साथ थी। शिक्षकों के मार्गदर्शन और बच्चों के सहयोग से वे अब पढ़ना लिखना सीख गई हैं और वे खुश हैं कि अंगूठे छाप की पहचान से भी मुक्ति मिल गई है।�

इस वजह से सोचा कि अब तो पढ़ना ही चाहिए

सलीमा खान बताती हैं कि बच्चे उनके पास आकर पैसे मांगते थे। मुझे गिनती नहीं आती थी, इसलिए कई बच्चे अतिरिक्त पैसे लेने के लिए बरगलाते थे। लेकिन अब वो दिन चले गए हैं, अब गिनती भी आती है और पढ़ना लिखना भी।��

सलीना खान की कहानी प्रेरणादायक: शिक्षा मंत्री

स्थानीय शिक्षा अधिकारी लक्ष्मी पांडे ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सलीमा खान जी की कहानी उस विश्वास को मजबूत करती है कि ज्ञान की खोज उम्र तक सीमित नहीं है। एक सरकारी शिक्षा पहल के स्वयं सेवकों ने सलीमा खान को एक संभावित छात्र के रूप में पहचाना और उसे स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया।

स्कूल की प्रधानाध्यापिका प्रतिभा शर्मा ने कहा कि शिक्षक शुरू में सलीमा खान को पढ़ाने के बारे में झिझक रहे थे, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनके जुनून के सामने स्कूल के शिक्षक भी हार गए। शर्मा ने बताया कि हमारे पास उन्हें मना करने का साहस नहीं था। 92 साल की उम्र में सलीमा खान ने जो कर दिखाया है, उसके चलते सभी को उन पर गर्व है।�

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