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कैदी और कोकिला का भावार्थ – kaidi aur kokila class 9 summary - Study Gyan ctahalaka

कैदी और कोकिला का भावार्थ – kaidi aur kokila class 9 summary - Study Gyan ctahalaka
कैदी और कोकिला का भावार्थ 

Class 9 Hindi Kshitij Chapter 12 Summary

Kaide aur Kokila by Makhan Lal Chaturwedi- कैदी और कोकिला

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय- Makhanlal Chaturvedi Ka Jeevan Parichay : माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक गांव में सन 1889 में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा के बाद इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारत के ख्याति-प्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। वे सरल भाषा और जोशीली भावनाओं के अनूठे हिन्दी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ ज़ोरदार प्रचार किया और नई पीढी से आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। वे सच्चे देशप्रेमी थे और 1921-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी  कविताओं में हमें देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण मिलता है।

हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूंजे धरा उनकी प्रमुख कविताओं में से एक है। अपने जीवनकाल में उन्होंने अध्यापन एवं संपादन दोनों का कार्य किया। उन्हें ‘देव पुरस्कार’, पद्मभूषण एवं साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपनी कविताओं में शिल्प की तुलना में भावना को ज़्यादा महत्त्व दिया है और यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में बोलचाल की भाषा का उपयोग किया है।

कैदी और कोकिला का भावार्थ – Kaidi Aur Kokila Ka Bhavarth: कवि ने “कैदी और कोकिला” कविता उस समय लिखी थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था। वे खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिस वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। जेल में रहने के दौरान वे इस बात से अवगत हुए कि जेल जाने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कितना दुर्व्यवहार होता है। इसी सोच को उस समय समस्त जनता के सामने लाने के लिए उन्होंने इस कविता की रचना की।

अपनी इस कविता में कवि ने जेल में बंद एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक कोयल का वर्णन भी किया है। कविता में कवि हमें उस समय जेल में मिल रही यातनाओं के बारे में बता रहा है। कवि (कैदी) के अनुसार, जहाँ पर चोर-डाकुओं को रखा जाता है, वहाँ उन्हें (स्वतंत्रता सेनानियों) को रखा गया है। उन्हें भर-पेट भोजन भी नसीब नहीं होता। ना वह रो सकते हैं और ना ही चैन की नींद सो सकते हैं। जेल में उन्हें बेड़ियाँ और हथकड़ियाँ पहन कर रहना पड़ता है। वहां उन्हें ना तो चैन से जीने दिया जाता है और ना ही चैन से मरने दिया जाता है। ऐसे में, कवि चाहते हैं कि यह कोयल समस्त देशवासियों को मुक्ति का गीत सुनाये।

कैदी और कोकिला – Kaide aur Kokila

क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
सन्देश किसका है?
कोकिल बोलो तो!

ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?

क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!

क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालायें हैं दीखी?
कोकिल बोलो तो!

क्या? -देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?- जीवन की तान,
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली?

इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!

काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!

इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!

तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे मिली कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!

इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!

Kaidi Aur Kokila Summary in Hindi – कैदी और कोकिला कविता का अर्थ

क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
सन्देश किसका है?
कोकिल बोलो तो!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने कारागार में बंद एक स्वतंत्रता सेनानी की मनोदशा को दर्शाया है। रात के घोर अंधकार में कारागृह के ऊपर जब वह एक कोयल को गाते हुए सुनता है, तो उसके मन में कई तरह के भाव एवं प्रश्न उत्पन्न होने लगते हैं। उसे ऐसा लगता है कि कोयल उसके लिए कोई संदेश लेकर आयी है, कोई प्रेरणा का स्रोत लेकर आयी है।

उससे इन प्रश्नों का बोझ सहा नहीं जाता और वह एक-एक कर के कोयल से सारे प्रश्न पूछने लगता है। वह सर्वप्रथम कोयल से पूछता है कि तुम क्या गा रही हो? फिर गाते-गाते तुम बीच-बीच में चुप क्यों हो जाती हो। वो कोयल से कहता है – हे कोयल! ज़रा बताओ तो, क्या तुम मेरे लिए कोई संदेश लेकर आयी हो? अगर कोई संदेश लेकर आयी हो, तो उसे कहते-कहते चुप क्यों हो जा रही हो और यह संदेश तुम्हें कहाँ से मिला है, ज़रा मुझे बताओ।

ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?
कैदी और कोकिला भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि ने अंग्रेज़ों के अत्यचार एवं उनके काले कारनामों को जनता के सामने प्रस्तुत किया है। पराधीन भारत में, जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी जेल के अंदर होने वाले अत्याचार एवं अपनी दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है कि उन्हें जेल के अंदर अंधकार में काली और ऊँची दीवारों के बीच डाकू, चोरों-उचक्कों के साथ रहना पड़ रहा है। जहाँ उसका कोई मान सम्मान नहीं है।

जबकि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें जीने के लिए पेट-भर खाना भी नहीं दिया जाता और ना ही उन्हें मरने दिया जाता है। यानि कि उन्हें तड़पा-तड़पा कर जीवित रखना ही प्रशासन का उद्देश्य है। इस प्रकार उनकी स्वतंत्रता पूरी तरह से छीन ली गई है और उनके ऊपर रात-दिन कड़ा पहरा लगा होता है।

अंग्रेजी शासन उनके साथ घोर अन्याय कर रहा है और अंग्रेज़ों के राज में स्वतंत्रता सेनानी को आकाश में भी घोर अंधकार रूपी निराशा दिख रही है, जहाँ न्याय रूपी चंद्रमा का थोड़ा-सा भी प्रकाश नहीं है। इसलिए स्वतंत्रता सेनानी के माध्यम से कवि कोयल से पूछता है – हे कोयल! इतनी रात को तू क्यों जाग रही है और दूसरों को क्यों जगा रही है? क्या तू कोई संदेश लेकर आयी है?

क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि ने कोयल के स्वर में निहित वेदना को बोझ के सामान बताकर, पराधीन भारतवासियों के मन में छुपी वेदना की तरफ इशारा किया है। जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी कोयल की आवाज़ में दर्द का अनुभव करता है। उसे ऐसा लगता है कि कोयल ने अँग्रेज़ सरकार द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देख लिया है। इसीलिए उसके कंठ से मीठी एवं मधुर ध्वनि के बजाय वेदना का स्वर सुनाई पड़ रहा है, जिसमें कोयल के दर्द की हूक शामिल है। कवि के अनुसार कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है।

इसीलिए कवि कोयल से पूछ रहा है – कोयल! बोलो तो तुम्हारा क्या लूट गया है, जो तुम्हारे कंठ से वेदना की ऐसी हूक सुनाई पड़ रही है? कोयल तो सबसे मीठी एवं सुरीली आवाज के लिए विख्यात है, जिसे गाते हुए सुनकर कोई भी मनुष्य प्रसन्न हो उठता है। लेकिन, जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी को कोयल की आवाज़ ना तो सुरीली लगी और न ही मीठी लगी, बल्कि उसे कोयल की आवाज़ में दुःख और वेदना की अनुभूति हुई। इसीलिए वह व्याकुल हो उठा और कोयल से बार-बार पूछने लगा कि बताओ कोयल तुम्हारे ऊपर क्या विपदा आई है?।

क्या हुई बावली?
अर्ध रात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालायें हैं दीखी?
कोकिल बोलो तो!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- स्वतंत्रता सेनानी को कोयल का इस तरह अंधकार से भरी आधी रात में गाना (चीखना), बड़ा ही अस्वाभाविक लगा। इसी वजह से उसने कोयल को बावली कहते हुए उससे पूछा है कि तुम्हें क्या हुआ है? तुम इस तरह आधी रात में क्यों चीख रही हो? क्या तुमने जंगल में लगी हुई आग देख ली है? यहाँ पर कवि ने जंगल की भयावह आग के रूप में अंग्रेज़ी सरकार की यातनाओं की तरफ इशारा किया है। उन्हें ऐसा लग रहा है कि कोयल ने अंग्रेज़ी सरकार की हैवानियत देख ली है, इसलिए वह चीख-चीख कर ये बात सबको बता रही है।

क्या? -देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?- जीवन की तान,
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली?
कैदी और कोकिला भावार्थ :- कवि को यह लगता है कि कोयल उसे जंजीरों में बंधा हुआ देखकर यूँ चीख पड़ी है। इसलिए कैदी कोयल से कहता है – क्या तुम हमें इस तरह जंजीरों में लिपटे हुए नहीं देख सकती हो? अरे ये तो अंग्रेज़ी सरकार द्वारा हमें दिया गया गहना है। अब तो कोल्हू चलने की आवाज हमारे जीवन का प्रेरणा-गीत बन गया है। दिन-भर पत्थर तोड़ते-तोड़ते हम उन पत्थरों पर अपनी उंगलियों से भारत की स्वतंत्रता के गान लिख रहे हैं। हम अपने पेट पर रस्सी बांध कर कोल्हू का चरसा चला-चला कर, ब्रिटिश सरकार की अकड़ का कुआँ खाली कर रहे हैं।

अर्थात् हम इतनी यातनाएं सहने और भूखे रहने के बाद भी अंग्रेज़ी शासन के सामने नहीं झुक रहे हैं, जिससे उनकी अकड़ ज़रूर कम हो जाएगी। इसी वजह से दिन में हमारे अंदर यातनाओं को सहने के लिए ग़जब का आत्मबल आ जाता है, जिससे हमारे अंदर कोई करुणा उत्पन्न नहीं होती और ना ही हम रोते हैं। शायद तुम्हें यह बात पता चल गई है, इसीलिए शायद तुम मुझे रात में सांत्वना देने आयी हो। परन्तु, तुम्हारे इस वेदना भरे स्वर ने मेरे ऊपर ग़जब ढा दिया है और मेरे मन को व्याकुल कर दिया है।

इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- आगे कवि कोयल से कहता है कि इस आधी-रात्रि में तुम अँधेरे को चीरते हुए इस तरह क्यों रो रही हो? कोयल बोलो तो, क्या तुम हमारे अंदर अंग्रेज़ी सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह के बीज बोना चाहती हो? इस तरह कवि ने जेल में कैद एक स्वतंत्रता सेनानी के मन की दशा का वर्णन किया है कि किस प्रकार कोयल यह गीत गा-गा कर भारतीयों में देश-प्रेम एवं देशभक्ति की भावना को मजबूत बनाना चाहती है, ताकि वे अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्ति पा सकें।

काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अंग्रेज़ी शासन-काल के दौरान जेलों में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ हो रहे घोर अत्याचार का वर्णन किया है। काले रंग को हमारे समाज में फैले दुःख और अशांति का प्रतीक माना गया है। इसीलिए कवि ने यहाँ हर चीज को काला बताया है। कवि कैदी के माध्यम से कह रहा है कि कोयल तू खुद काली है, ये रात भी घोर काली है और ठीक इसी तरह अंग्रेज़ी सरकार द्वारा की जाने वाली सारी करतूतें भी काली है और जेल की काली चारदीवारी में चलने वाली हवा भी काली है।

मैंने जो टोपी पहनी हुई है, वह भी काली है और जो कम्बल मैं ओढ़ता हूँ वह भी काला है। मैंने जो लोहे की जंजीरें पहन रखी हैं, वह भी काली है और इसी वजह से हमारे अंदर आने वाली कल्पनाएं भी काली हो गई हैं। इतनी यातनाओं को सहने के बाद, हमें हमारे ऊपर दिन-भर नजर रखने वाले पहरेदारों की हुंकार और गाली भी सुननी पड़ती हैं। जो किसी काले सांप की भाँति हमें डँसने को दौड़ती हैं।

इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- कवि यह नहीं समझ पा रहा है कि कोयल स्वतंत्र होने के बाद भी इस अँधेरी आधी रात में कारागार के ऊपर मंडराकर अपनी मधुर आवाज़ में गीत क्यों गा रही है। क्या वह इस संकट में खुद को इसलिए ले आयी है कि उसने मरने की ठान ली है। इसका कोई लाभ होने वाला नहीं है। इसलिए कैदी कोयल से पूछ रहा है – हे कोयल!  बताओ तुम क्यों इस विपरीत परिस्थिति में आज़ादी की भावना जगाने वाले गीत गा रही हो?

तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे मिली कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने स्वतंत्र कोयल एवं बंदी कैदी की मनःस्थिति की तुलना बड़े ही मार्मिक ढंग से की है। जहाँ एक ओर कोयल पूरी तरह से स्वतंत्र, किसी भी पेड़ की डाली में जाकर बैठ सकती है। कहीं पर भी विचरण कर सकती है और अपने मनचाहे गीत गा सकती है। वहीँ दूसरी ओर कैदी के लिए अंधकार से भरी 10 फुट की जेल की चारदीवारी है। जिसमें उसे अपना जीवन बिताना है, वह वहाँ अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकता।

कोयल के मधुर गान को सुनकर सब लोग वाह-वाह करते हैं। वहीँ किसी कैदी के रोने को कोई सुनता तक नहीं है। इस प्रकार, कैदी और कोयल की परिस्थिति में ज़मीन-आसमान का फर्क है, मगर, फिर भी कोयल युद्ध का संगीत क्यों बजा रही है? कैदी कोयल से जानना चाहता है कि आखिर कोयल के इस तरह रहस्यमय ढंग से गाने का क्या मतलब है?

इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!
कैदी और कोकिला भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कोयल और कैदी दोनों के अंदर स्वतंत्रता की प्रबल भावना को दिखाया है। जहां कोयल अपने जोशीले गान से देशवासियों में विद्रोह को जागृत कर रही है, वहीं कैदी स्वंत्रता के लिए लगातार अंग्रेज़ी सरकार की यातनायें सहन कर रहा है। इसीलिए कवि ने यहाँ कोयल की आवाज को कैदी के लिए आजादी का संदेश बताया है। जिसे सुनकर कैदी कुछ भी करने के लिए तैयार हो सकता है।

इसलिए इन पंक्तियों में कैदी कोयल से पूछ रहा है कि हे कोयल! मुझे बता कि मैं गांधी जी द्वारा चलाये जा रहे इस स्वतंत्रता संग्राम में किस तरह अपने प्राण झोंक दूँ? मैं तम्हारे संगीत को सुनकर अपनी रचनाओं के द्वारा क्रान्ति की ज्वाला भड़काने वाली अग्नि तो पैदा कर रहा हूँ, लेकिन तुम मुझे बताओ कि मैं देश की आज़ादी के लिए और क्या कर सकता हूँ?

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