Type Here to Get Search Results !

Happy Teacher's Day 2023: 5 सिंतबर को ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस, जानें इसके पीछे की वजह

 5 सिंतबर को ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस।

 5 सिंतबर को ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस।

Teacher's Day 2023: आज यानी 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती है। आज के दिन पूरा भारत उन्हें याद करते हुए काफी उत्साह के साथ शिक्षक दिवस मनाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में तरह-तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस दिन छात्र अपने गुरू के लिए उपहार भी लेकर आते है। कई लोग अपनी मां को सबसे पहला गुरू मानते हैं और उनको भी अपने शिक्षक की तरह सम्मान देते हैं और कहा यह भी जाता है कि माता-पिता के बाद हमारे जीवन में एक गुरू का सबसे बड़ा योगदान होता है। हिंदू धर्म में गुरू को भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। आपने भी कबीरदास का दोहा तो पढ़ा ही होगा, जिसमें वे कहते हैं-

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय,

बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।

इस दोहे के माध्यम से कबीरदास ये कह रहे हैं कि मेरे सामने मेरे गुरू और भगवन दोनों ही खड़े हैं। पर मैं पहले किसके पहले चरणस्पर्श करुं। वे अपने गुरू को धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि आपने ही मुझे बताया की यह भगवान हैं तो मैं आपको भगवान से पहले सम्मान देता हूं। आज भी भारत देश में गुरू को भगवान का रूप माना जाता हैं। एक शिक्षक के बिना विद्यार्थी का जीवन अधूरा ही रह जाता है। आज दिन हमारे सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती है जो एक शिक्षक भी थे और भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भी तो आइये, जाने विस्तार से उनकी आत्मकथा।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन की आत्मकथा जानकर हो जाएंगे हैरान

सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962- 1967 तक भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने। इनका जन्म आज ही के दिन यानि 5 सितंबर 1888 तिरुतनी ग्राम, तमिलनाडु में हुआ था। बचपन से ही इनको किताबें पड़ने का बहुत शौक था। साधारण परिवार में जन्में राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता । वह शुरू से ही पढाई-लिखाई में काफी रूचि रखते थे। स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे, जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था। कम उम्र में ही आपने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढा तथा उनके विचारों को आत्मसात भी किया। इन्होने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति भी प्राप्त की । क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने भी उनकी विशेष योग्यता के कारण छात्रवृत्ति प्रदान की। डॉ राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन

बता दें कि वर्ष 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया। इसके पश्चात 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्वतन्त्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए राधाकृष्णन को वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 के गणतंत्र दिवस पर देश को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे और बतौर राष्ट्रपति ये उनका आखिरी भाषण था।

सन् 1949 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मास्को में भारत का राजदूत बनाया गया। मास्को में भारत की प्रतिष्ठा इन्ही की देन है। सन 1955 में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में सदन की कार्यवाही का इन्होने नया आयाम प्रस्तुत किया। सन 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में सेवा की। इन्होने मतभेदों के बीच समन्वय का रास्ता ढूढ़ने की बात सिखाई। सर्वागीण प्रगति के लिए इन्होने बताया की आज हमें अमेरिकी या रूसी तरीके की नहीं बल्कि मानववादी तरीके की जरुरत है। सन 1967 में राष्ट्रपति पद से मुक्त होने पर देशवासियो को सुझाव दिया की हिंसापूर्ण अव्यवस्था के बिना भी परिवर्तन लाया जा सकता है। इनके व्याख्यानों से पूरी दुनिया के लोग प्रभावित थे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 में राजनीतिक जीवन छोड़कर अपने घर चले गए थे। 

Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Below Post Ad